Saturday, 19 September 2020

बढ़ती बेरोज़गारी पर मोन क्यों है सरकार ?

 आज भारत में बेरोज़गारी की भयानक समस्या एक अभिशाप के जैसे युवाओं के दिलों,दिमाग में अपना घर बनाती जा रही है।

जिधर देखो, उधर एक ही बात है सरकारी नोकरी कैसे हासिल की जाए

आज युवा का एक ही सपना है ग्रेजुएशन होते ही उसे एक अच्छी सरकारी नौकरी मिल जाए बस...

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बीजेपी सरकार कही झूठे दावे कर चुकी है कि देश में रोजगार की कोई कमी नहीं है...लेकिन ऐसे दावों के कोई सिर पैर नहीं होते हैं।



NSSO के द्वारा दिए आंकड़ों के मुताबिक भारत में पिछले 45 वर्षो में बेरोज़गारी अपने उच्च स्तर पर है, 

भारत की बेरोज़गारी दर फरवरी 2020 में बढ़कर 7.78%  हो चुकी है

में इसके लिए दो कारणों को जिम्मेदार मानता हूं, पहली नई नौकरियों का सृजन नहीं कर पाना, दूसरी उद्योगों में मेन पावर की कमी...सरकार का अड़ियल रवैया...मानो जैसे वह पैसा खर्च ही नहीं करना चाहती... लोगों के हाथों में पैसा आए...उनकी ये कतई मंसा नहीं है

आज ये स्थिति बन गई है कि समूचा भारत बेरोजगारी की भयंकर चपेट में आ गया है

आप अंदाजा लगा सकते हो, पीछले कई सालों से भारत में रेप, चोरी, अपहरण जैसे अपराधों में वृद्धि हुई हैं...आप सोच रहे होंगे ऐसा कैसे...

ज्यादातर युवा वर्ग रोज़गार नहीं मिलने के अभाव में अपने कदम अपराधों की खोफनाक दुनिया में रख देते है

                हम कह सकते है कि उनका ये क़दम पूरी तरह गलत है।

 देश की तमाम पार्टियां चुनाव के समय लंबे लंबे बादे करती हैं, युवाओं, किसानों, महिलाओं, दलित और आदिवासी एवम् अल्पसंख्यक लोगों के कल्याण के लिए कई सारे खोखले चुनावी वादे किए जाते हैैं....बाद में उन्हें सत्ता प्राप्त करने के, भाषण देने का चुनावी जुमला कह दिया जाता हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के 70बे जन्मदिन पर, 17 September को युवाओं ने #राष्ट्रीय_बेरोजगार_दिवस के रूप में मनाया, सभी युवा साथियों ने Twitter #Tag चलाया, जो लगभग 3 मिलियन टवीट्स के साथ सारे दिन टॉप ट्रेंड करता रहा...मानो जैसे युवाओं के इस प्रयास ने मोदी जी के जन्मदिन को फ़ीखा कर दिया हो, जैसे सोई हुई सरकार को जगा दिया हो...मोदी जी दाढ़ी बढ़ाने से कोई रवीन्द्र नाथ टैगोर नहीं बन जाता... दाढ़ी नहीं, युवाओं के लिए रोज़गार बढ़ाइए जब देश तरक्की करेगा।

इधर उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के कारनामें भी कुछ कम नहीं है,  तत्कालीन योगी सरकार सरकारी भर्तियों के बदलाव में एक परिवर्तन कर रही है, जो काफ़ी चिंताजनक है, इसके हिसाब से उत्तर प्रदेश में  शुरुआती 5 बर्ष तक संबिदा पर सरकारी नौकरी करनी पड़ेगी,

अगर आपने संविदा के  इन 5 वर्षो में अच्छा प्रदर्शन किया है या आप उस पद के लिए योग्य उम्मीदबार नहीं हो...तो आपको कार्य मुक्त करके घर भेज दिया जाएगा।

भारत में ऐसे करोड़ों बीजेपी अंधभक्त है जो इस काले कानून का भी समर्थन कर रहे है।

ये लोग सरकारी एयर इंडिया, BSNL, Railways Banks का तेज़ी से हो रहे निजीकरण के पूर्ण समर्थन में है....लेकिन इनको नौकरी सरकारी ही चाहिए।

दैनिक भास्कर में  अगस्त 2019 में छपी एक खबर को देखो तो, वाहन बिक्री में 19 साल की सबसे बड़ी गिरावट आई है. जिससे 10 लाख लोगों की नौकरियों जाने का खतरा पैदा हो गया है

Railways NTPC में 35208 पदों के लिए 1.26 करोड़ आवेदन प्राप्त हुए है...सोच सकते हो आप की बेरोज़गारी किस स्तर पर पहुंच गई है

जितनी ताकत मोदी ने विपक्षी दलों, निजीकरण, लोगों का रोजगार छीनने में लगाई है, उतनी ही ताक़त अगर युवाओं को रोज़गार, किसान के कल्याण में लगाते तो देश रातों रात बदल जाता....

देश के तमाम न्यूज चैनल, अख़बार जिनको लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहते हैं, आज सिर्फ़ सरकारी गुलाम बन गया हैं...इनका काम सिर्फ हिंदू-मुस्लिम नफ़रत परोसना, कभी कंगना के नाम पर, तो कभी साधुओं के नाम पर...सारे दिन इनका नफ़रती कार्यक्रम चलता रहता हैं...देख लेना एक दिन ऐसा आएगा जब तुम लोग भी बेरोजगार हो जाओगे...

भारत की इस दयनीय स्थिति के जिम्मेदार यहां के राजनेता हैं, जिन्होंने अर्थव्यवस्था को -23 पर लाके रख दिया हैं, जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए कोई ठोस क़दम नहीं उठाए, गरीब किसानों को उचित मूल्य पर कृषि उपकरण मुहैया नहीं करवाते, छोटे छोटे उद्योग तो जैसे ख़तम ही कर दिए हो, युवाओं को बेरोज़गारी के दल दल में ठकेल दिया है।

Thursday, 10 September 2020

#Lateral Entry


हम सभी जानते है कि आईएएस, आईपीएस,आईएफएस की नियुक्ति के लिए संघ लोक सेवा आयोग के द्वारा परीक्षा आयोजित की जाती है

जिस तरह देश को चलाने के लिए जनता सरकारों को चुनती है..ठीक उसी तरह UPSC परीक्षा व इन्टरव्यू के द्वारा IAS,IPS,IFS  को चुना जाता है।

लेकिन सही मायनों में शासन की सारी बागड़ोर नेताओ के हाथ में नहीं... अफसरों के हाथ में होती है...आप कह सकते हो कि सरकार और जनता के बीच की कड़ी होते है ये अफसर.....

में आपको बताना चाहता हूं कि 2019 में मोदी सरकार ने सुजीत कुमार बाजपई (मनोज बाजपई का भाई) को - वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में ज्वाइंट सेक्रेटरी के पद पर नियुक्ति किया था, अम्बर दुबे को Civil Aviation ministry में ज्वॉइंट सेक्रेटरी के पद पर नियुक्त किया था....

सरकार में ज्वाइंट सेक्रेटरी वह पद है जिस पर पहुंचने के लिए UPSC सिविल सेवा परीक्षा पास कर IAS अफसर बन चुके लोगों को...ना जाने कितने साल लग जाते है ज्वाइंट सेक्रेटरी के पद पर पहुंचने के लिए....बशर्ते वो सरकार के कामकाजों और उनकी नीतियों का विरोध ना करे तो..... 



ऐसा नहीं है कि Civil Services में lateral entry सिर्फ़ बीजेपी सरकार में हुई है बल्कि कांग्रेस के शासनकाल में पूर्व गवर्नर रघुराम राजन, विख्यात अर्थशास्त्री व पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी Lateral entry के द्वारा सीधे ही वित्त सचिव बना दिया गया था



लेकिन मोदी सरकार Lateral entry के माध्यम से सिर्फ अपने सगे संबंधियों को और नजदीकी लोगो को ही नियुक्त कर रही है....जिससे मोदी सरकार नीति और नीयत के सवालों के घेरे में आ गई है

क्योंकि मोदी सरकार ने जिन 9 लोगो को बिना UPSC की परीक्षा दिए ही सीधे ही नियुक्त किया है उनमें ज्यादातर वो लोग है जो चंदे के रूप में सरकार को भारी भरकम पैसा देते है...तो सवाल करना तो बनता है

आरक्षण के विरोध में लोग सड़को पर निकल कर विरोध करते है...कहते है कि उनकी नोकरी आरक्षण की वजह से नहीं लगी....

आख़िरकार लोग सरकार की इन गलत नीतियों का विरोध क्यों नहीं करते....आपके विरोध ना करने के दो ही कारण हो सकते है...या तो आप मनुवादी हो या मोदी भक्त हो....

में, कोई बीजेपी विरोधी या किसी पार्टी का सपोर्टर नहीं हूं...सरकार किसी भी पार्टी की हो, हमें सरकार से सवाल पूछना चाहिए, उनकी गलत नीतियों का विरोध करना चाहिए

कोई भी सरकार तब तक अच्छी नहीं हो सकती, जब तक कि उसे एक अच्छा विपक्षी दल नहीं मिले,

आख़रकार सवाल ये है कि जो बच्चे सालों साल तक IAS,IPS बनने का सपना लिए हुए जी तोड़ मेहनत करते है लेकिन जब सरकार Lateral entry के माध्यम से सीधे ही किसी को IAS, IPS या उससे भी ऊंचे पद  पर नियुक्त कर देती है तो युवाओं का विरोध करना लाज़मी है

UPSC में भी 40 फीसदी सीटें कम कर दी गई हैं, इससे उसकी कोई  स्‍वतंत्रता और स्‍वायत्‍तता नहीं रह जाएगी,  इस प्रक्रिया से UPSC एक असहाय संस्‍था बन जाएगी और आरक्षण व्‍यवस्‍था को भी नुकसान पहुंचेगा....

Lateral Entry प्रक्रिया में भी आरक्षण का प्रावधान... संविधान की धारा 315 से 323 तक इसका जिक्र है. लेकिन मोदी सरकार ने जैसे संविधान को ना मानने का नियम बना लिया हो...

अपने अधिकारी नियुक्‍त करने के लिए.... (जो सिर्फ आपकी भक्ति करना जानते है) आप संविधान को क्‍यों बर्बाद कर रहे हैं... ज्‍वॉइंट सेक्रेटरी काफी अहम होते हैं और उन्‍हें आरक्षण से दूर रखने से आरक्षण की जो संवैधानिक भावना है वो नष्‍ट हो जाएगी...

आप सब जानते हो कि ज्‍वॉइट सेक्रेटरी केंद्र सरकार के कामकाज में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाते है, वे नीति निर्माण के साथ ही योजनाओं और कार्यक्रमों को लागू करने की जिम्‍मेदारी संभालते हैं।।

Sonu Ghunawat





Monday, 7 September 2020

“गुलशन की महकती फिज़ा”

हर लड़की का सपना होता है, की उसे एक अच्छा इंसान पति के रूप में मिले.....लेकिन हर लड़की ये भी चाहतीं है की उसकी जिंदगी में बो पल भी आये, जब कोई उसे मां, मम्मा कह कर बुलाए।

       

♥️ŅAYŔA♥️


हां, आज से ठीक 2 बर्ष पहले( 5-सितंबर 2019), समय ठीक 8:52 बजे, मानों जैसे तुम्हारा बर्षो का इंतज़ार ख़त्म हो गया हो, 

आज के ही दिन तुमने एक परी को जन्म दिया था, एक खिलखिलाती हुई राजकुमारी को पाया था, किसको पता था कि ये दिन तुम्हारी ज़िन्दगी में ठेर सारी खुशियां लेकर आने बाला है।

आज ही के दिन मेरी फूल जैसी दोस्त को, फूलों ने महकते हुए बोला, मुबारक हो आपके आशियाने में एक नन्हीं परी आई है।

चाहें दुनियां के लिए तुम आज पूरी 2 साल की हो गई हो, लेकिन मेरे लिए पूरे 2 साल, 9 माह कि हो गई हो....तेरे दुनियां में आने से पहले ही में, तेरी मां तेरे साथ 9 माह की ज़िन्दगी जी चुकी थी।

तेरी हर आहट, तेरा सोना, जागना, भूख लगना, प्यारी सी किक मारना,  मुझे तेरे होने का अहसास देता था, तेरी मुस्कान मुझे मुस्कान देती थी, मेरी ज़िन्दगी के खुशनुमा और सुनहरे पल थे वो, जिन्हें मैने सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारे साथ जिया हैं।

समेट लेना चाहती हूं, तेरे अल्फ़ाज़, तेरी क्यूट हंसी को, गुदगुदाने वाली शैतानियों को, हर बो आहट, हर चाह, हर बो पल जिससे तुम्हे खुशी मिली हो,


जब पहली बार मैने तेरे मुंह से मम्मा सुना, मानों जैसे इस एक आवाज़ ने दुनियां भर की ख़ुशी मेरी झोली में डाल दी हो...

यूं तो प्यार तो सभी करते हैं तुझसे, पर मेरी बेटी के लिए मेरा प्यार कुछ अलग सा हैं, 

मुझे अभी भी याद हैं, जब तू बीमार हुई थी, इस एक वजह ने मुझे कहीं रातों तक चैन से सोने नहीं दिया, हर दिन - रात, हर पल तुम्हीं थी मेरे ज़हन में, और हो भी क्यों ना... एक लंबे सफ़र के बाद तुझे पाया था मैने, कहीं तुझे कुछ हो ना जाए, इसी डर से आत्मा कांप उठती थी मेरी.....

जब किसी दिन मेरी ज़िन्दगी के पन्ने पूरे होंगे...
मुझे पता है कि मेरी बेटी सबसे सुन्दर अध्यायों (Chapters)  में से एक होगी।

बस यहीं आरज़ू है कि, तुम्हारा हर दिन....तुम्हारे जन्मदिन की तरह ही गुज़रे...... और खुशियां भी सदा तेरी दीवानी रहें।।
Happy Birthday Dear......

 Sonu Ghunawat...

Saturday, 4 July 2020

जातिवाद का जहर और शोषण.... आख़िर कब तक ??



आज जातिवाद अपनी चरम सीमा पर है, जिसमें अंधे होकर लोग मानवता के असली मायनों को ही भूल गए है। 
आज सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया भर में जाति के आधार पर भेदभाव हो रहा है।

जातिगत भेदभाव कोई आज की बीमारी नहीं है, ये तो पिछले हजारों सालों से चली आ रही एक शोषण करने की बुरी प्रथा है।

जो लोग भगवान को मानते है, वो कहते है कि कोई हिन्दू, कोई मुसलमान, कोई सिक्ख, कोई ईसाई नहीं है... ऊपरवाले ने तो सिर्फ और सिर्फ इन्सान बनाया था.....


गौर करने की बात है
People are searching for Hima Das's caste on Google
 गूगल पर हिमा दास की जाति खोज रहे लोग



हिमा दास और पिवी सिंधु  दोनो
 ही देश के लिए गोल्ड🏅 लेकर आई...देश का नाम रोशन किया, 
मोदी जी ने हिमा को 50000 ₹. की राशि और पीवी सिंधु को 1000000 ₹ , सचिन तेंडुलकर ने BMW तोहफे में दी...दोगले मीडिया ने पीवी सिंधु को फ्रंट पेज पर और हिमा दास की चर्चा भी नहीं की, जानते हो क्यों...

क्योंकी पीवी सिंधु उच्च जाति से है और हिमा दास आदिवासी वर्ग से है, ना जानें कितनी ही प्रतिभाओं निखरने से पहले ही जातिवाद की भेंट चढ़ गई...
जातिवाद के पर्दे के पीछे प्रतिभाओं का गला घोंटने का गंदा खेल खेला जाता है।

वो कोण लोग है जिन्होंने हमें जातियों और धर्म की बेड़ियों का बंधक बना दिया।

पर आज मानो जैसे कोई इंसानियत की परिभाषा जानना ही नहीं चाहता...क्योंकि जातिवाद का कीड़ा पिछले सेकड़ो बरसों से उसके अंदर पनप रहा है...जो कभी उसे जाति से ऊपर देखने ही नहीं देता।

समय समय पर कुछ महान लोगों ने इस जातिवादी कीड़े को मिटाने की कोशिश की... मीरा ने रैदास जी को अपना गुरु बनाया
महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानन्द  और बाद में डॉ भीम राव अंबेडकर ने जातिगत भेदभाव को खत्म करने के लिए कही प्रयास किए....

आखिर जाति समाज से क्यों नहीं जाती......

सोनू घुणावत



Sunday, 14 June 2020

#गांव, मानों तो जिंदगी

 हिन्दुस्तान का एक बड़ा हिस्सा आज भी गांवों में रहता है,



 लेकिन आज की कॉरपोरेट दुनिया, गांवों के रोजगार को मानो जैसे खा गई हो
लोग अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए शहरों को तरफ भागे जा रहे है,

इन्हीं रोजमर्रा की चीजों ने गांवों को, शहर जाने को मजबूर कर दिया है,
शहर जाने बाली रेलगाड़ियां लोगो से ठसा ठस्स भरी हुई दिखाई देती है।

लेकिन जब आज शहरों में  #महामारी, पर्यावरण प्रदूषण, तरह - तरह बीमारियां फैल रही है.... ऐसी परिस्थितियों में लोगो को गांव याद आने लगता है क्योंकि
इस दौर में भी गांव में जीवन और खुशहाली कायम है
गांवो की खुशबू ही अलग होती है...जिसकी महक से पशु, जनलोक और गलियों में एक अलग ही माहौल रहता है...

Sonu Ghunawat


Saturday, 13 June 2020

#सच्ची मोहब्बतें... एक कहानी मात्र





  • आज के दिन तुम मुझे मिले थी, तुम्हारे बताए बिना ही में तुम्हारी पसंद जान गया... ढेर सारे रेड रोजेज लेकर तुम्हे सरप्राइज कर दिया
शायद किस्मत भी यही चाहती थी की तुम्हारी पलको की छाय में, में अपनी पूरी जिंदगी बिता दू
आज पहली बार तुम मुझसे अपसेट हुई हो, तुम्हारी नाराजगी ने जैसे पूरी दुनिया को खामोश कर दिया…..ना
सूरज निकला, ना रोशनी हुई…तुम्हारी उदासी ने जैसे फूलों को मुरझा दिया हो…लेकिन फिर मैने तुम्हे मनाया, एक ये ही हंसी के लिए में कुछ भी कर सकता हूं।
तुम कहते तो शायद चांद को भी तुम्हारे क़दमों में ला देता।
आज होली है, मुझे होली का त्योहार कभी पसंद नहीं था, लेकिन इस बार कुछ लगा था, ऐसा लगने लगा था…..जैसे होली सबसे अच्छा फेस्टिवल है
शायद उसकी बजह तुम थी क्योंकि होली के हज़ारों रंगो की तरह, मेरी लाइफ में भी बहार बन कर आए
*तेरे बिना में कुछ भी नहीं*

#बचपन के पल


दोस्तों, 


बचपन के दिन भी कितने खूबसूरत होते थे ना...

दोस्तो के साथ सारे दिन खेलना,बेवजह हंसना, रूठना - मनाना....

मुझे अभी भी वो पल याद है....जब रक्षाबंधन पर हम कटी हुई पतंगों के पीछे दूर दूर तक चले जाते थे,
 मानो जैसे लगता था, उन पतंगों की  तरह हम भी उड़ रहे है।

एक बात कहूं...दीवाली का तो हमें बेसब्री से इंतजार रहता था....आजकल के बच्चे तो सिर्फ सेल्फी लेने के लिए दीवाली मनाते है...और फेसबुक, इंस्टा पे साझा कर देते है 

सोशिल साइट्स के डिजिटल प्यार में बच्चे इस कदर पागल है कि वो अपना बचपन जीना ही भूल गए है।


 हमारे बचपन  के दिन भी कितने अजीब थे, तब सिर्फ और सिर्फ खिलौने टूटा करते थे...आज कल तो छोटी छोटी बातों पर दिल टूट जाया करते है

अजीब सौदेबाज है ये वक्त भी... हमें बड़े होने का लालच देकर...हमारा बचपन छीन कर ले गया।

आज तो हंसने के लिए भी लोग पार्टियां करते है....हम तो बेवजह ही हंस लिया करते थे....बरसात के पानी में खेलना, ⛵नावे चलाना जैसे हमारी स्थाई आदत थी.....

अब नहीं बहती नावें⛵ बरसात के पानी में...अब तो बच्चों को मोबाइलों से प्यार और लड़कियों से इश्क जो हो गया है।।

सोनू घुणावत

#पसन्द और मोहब्बत



🌳पेड़ो कि दुनिया भी बहुत अजीब होती है ना🌳

चारो ओर हरियाली ही हरियाली🌳
मैने अपनी आधी उम्र पेड़ो🌳 के लिए समर्पित कर दी...

🌳पेड़ पौधों की दुनिया में रह कर देखा मैने...बहुत सुकून देता  है ये सब....🌳

इस  नकली मानव की नकली चकाचौंध से....हमेशा ही दूर रहा था में....

जैसे मेरी एक अलग ही दुनिया हो....जहां मेरे चाहने वाले ओर हरियाली हो.....🌳

मैने किसी को चाहा था... इन पेड़ो कि तरहा...
पर मेरा वो कभी नहीं हो सका....मालूम नहीं क्यो....

सायद इस लिए कि में उससे ज्यादा , पेड़ो को चाहने लगा था.....

पर ये पेड़, पोधे,पक्षी जिनके साथ में जिया हूं....इ
मुझे हमेशा अपनाया है.....🌳

चाहे में इनके लिए कुछ भी ना करू...पर मुझे यकीन है .....मेरे साए की तरह...ये भी मेरा कभी साथ नहीं छोड़ने वाले है

मेरे एक दोस्त को समर्पित....🌳🌳🌳